Saturday, July 1, 2023

पलकों से है समंदर पिया- पलकों पर कविता ! palkon Par Hindi Kavitas

 पलकों से है समंदर पिया- Palko Par Kavita 

मैं ना हूँ कोई बुझता दिया,
मैं तो हूँ एक खुला आसमां,
इस दुनिया को खुद में जिया.

मेरे खेल दर्द के अनोखे हैं,
मुझमें दरिया दर्द के सोते हैं,
फिर भी जिंदादिली है अपनी,
अपना मुस्कराने का जरिया।

ना हीं कोई अंधेरों की आवाज़,
रौशन है दहकती मन की आग,
तन्हाईयों के घर जला दिए मैंने,
बहुत कीमती जीने की डगरिया।

क्यों रहना यहां घुटन में हरपल,
करते रहो कोई ना कोई हलचल,
बेबसी की कतारों में कब तक रहें,
जब सामने हो उम्मीदों का दरिया।

इस वक़्त के अजीब से गोते हैं,
यहां बिन डूबे ही सब रोते हैं,
क्या बरसेगी किस्मत उसपर,
जिसने दगा अमन खुदसे किया।

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